Harishankar Parsai

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Books By Harishankar Parsai
Awara Bheed Ke Khatare (Hindi Edition)
1 Jan, 2004
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आवारा भीड़ के खतरे – हरिशंकर परसाई यह पुस्तक हिंदी के अन्यतम व्यंगकार हरिशकर परसाई के निधन के बाद उनके असंकलित और कुछेक अप्रकाशित व्यंग-निबंधों का एकमात्र संकलन है ! अपनी कलम से जीवन ही जीवन छलकानेवाले इस लेखक की मृत्यु खुद में एक महत्त्वहीन-सी घटना बन गई लगती है ! शायद ही हिंदी साहित्य की किसी अन्य हस्ती ने साहित्य और समाज में जड़ ज़माने की कोशिश करती मरणोन्मुखता पर इतनी सतत, इतनी करारी चोट की हो ! इस संग्रह के व्यंग-निबंधों के रचनाकाल का और उनकी विषय-वस्तु का भी दा
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Vikalang Shraddha Ka Daur (Hindi Edition)
1 Jan, 1994
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श्रद्धा ग्रहण करने की भी एक विधि होती है! मुझसे सहज ढंग से अभी श्रद्धा ग्रहण नहीं होती! अटपटा जाता हूँ! अभी 'पार्ट टाइम' श्रधेय ही हूँ! कल दो आदमी आये! वे बात करके जब उठे तब एक ने मेरे चरण छूने को हाथ बढाया! हम दोनों ही नौसिखुए! उसे चरण चूने का अभ्यास नहीं था, मुझे छुआने का! जैसा भी बना उसने चरण छु लिए! पर दूसरा आदमी दुविधा में था! वह तय नहीं कर प् रहा था कि मेरे चरण छूए य नहीं! मैं भिखारी की तरह उसे देख रहा था! वह थोडा-सा झुका! मेरी आशा उठी! पर वह फिर सीधा हो गया! मैं बुझ गया! उसने फिर जी कदा करके कोशिश की! थोडा झुका! मेरे पाँवो में फडकन उठी! फिर वह असफल रहा! वह नमस्ते करके ही चला गया! उसने अपने साथी से कहा होगा- तुम भी यार, कैसे टूच्चो के चरण छूते हो!
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Nithalle Ki Diary (Hindi)
10 Oct, 2016
₹ 110.25
Nithalle Ki Diary by Harishankar Parsai is from Rajkamal Prakashan, a noted publishing house of Hindi literature.
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Thithurata Huaa Gantantra (Hindi Edition)
1 Jan, 2018
₹ 58.50
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परसाई हँसाने की हड़बड़ी में नहीं होते। वे पढ़नेवाले को देवता नहीं मानते, न ग्राहक, सिर्फ एक नागरिक मानते हैं, वह भी उस देश का जिसका स्वतंत्रता दिवस बारिश के मौसम में पड़ता है और गणतंत्र दिवस कड़ाके की ठंड में। परसाई की निगाह से यह बात नहीं बच सकी तो सि$र्फ इसलिए कि ये दोनों पर्व उनके लिए सिर्फ उत्सव नहीं, सोचने-विचारने के भी दिन हैं। वे नहीं चाहते कि इन दिनों को सिर्फ थोथी राष्ट्र-श्लाघा में व्यर्थ कर दिया जाए, जैसा कि आम तौर पर होता है। देखने का यही नज़रिया परसाई को परसाई बनाता है और हिन्दी व्यंग्य की परम्परा में उन्हें अलग स्थान पर प्रतिष्ठित करता है। प्रचलित, स्वीकृत और उत्सवीकृत की वे बहुत निर्मम ढंग से चीर-फाड़ करते हैं। इसी संग्रह में 'इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर' शीर्षक व्यंग्य में वे भ
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Paperback
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Hum Ek Umra Se Wakif Hain (Hindi Edition)
1 Jan, 2018
₹ 110.25
परसाई जैसा बड़ा रचनाकार जब ‘हम इक उस से वाकिफ हैं’ होने की बात करता है तो उसका मतलब सिर्फ उतना ही नहीं होता, क्योंकि उसकी ‘उम्र’ एक युग का पर्याय बन चुकी होती है। इसलिए यह कृति परसाई जी के जीवनालेख के साथ-साथ एक लम्बे रचनात्मक दौर का भी अंकन है। परसाई जी ने इस पुस्तक में अपने जीवन की उन विभिन्न स्थितियों और घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें न केवल उनके रचनाकार व्यक्तित्व का निर्माण हुआ, बल्कि उनकी लेखनी को भी एक नई धार मिल सकी। उनका समूचा जीवन एक सक्रिय बुद्धिजीवी का जीवन रहा। वे सदा सिद्धान्त को कर्म से जोडक़र चले और अपनी रचनात्मकता पर काल्पनिक यथार्थवाद की छाया तक नहीं पडऩे दी। इसलिए आकस्मिक नहीं कि इस पुस्तक में हम उन्हें विभिन्न आन्दोलनरत संगठनों के कुशल संगठनकर्ता के रूप में भी देख &
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₹ 100.00
वह पहले चौराहों पर बिजली के टार्च बेचा करता था । बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा । कल फिर दिखा । मगर इस बार उसने दाढी बढा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था ।
मैंने पूछा, ” कहाँ रहे? और यह दाढी क्यों बढा रखी है? ”
उसने जवाब दिया, ” बाहर गया था । ”
दाढीवाले सवाल का उसने जवाब यह दिया कि दाढी पर हाथ फेरने लगा । मैंने कहा, ” आज तुम टार्च नहीं बेच रहे हो? ”
उसने कहा, ” वह काम बंद कर दिया । अब तो आत्मा के भीतर टार्च जल उठा है । ये ‘ सूरजछाप ‘ टार्च अब व्यर्थ मालूम होते हैं । ”
मैंने कहा, ” तुम शायद संन्यास ले रहे हो । जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है, वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है । किससे दीक्षा ले आए? ”
मेरी बात से उसे पीडा हुई । उसने कहा, ” ऐसे कठोर वचन मत बोलिए । आत्मा सबकी एक है । मेरी आत्मा को चोट पहुँचाकर
मैंने पूछा, ” कहाँ रहे? और यह दाढी क्यों बढा रखी है? ”
उसने जवाब दिया, ” बाहर गया था । ”
दाढीवाले सवाल का उसने जवाब यह दिया कि दाढी पर हाथ फेरने लगा । मैंने कहा, ” आज तुम टार्च नहीं बेच रहे हो? ”
उसने कहा, ” वह काम बंद कर दिया । अब तो आत्मा के भीतर टार्च जल उठा है । ये ‘ सूरजछाप ‘ टार्च अब व्यर्थ मालूम होते हैं । ”
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मेरी बात से उसे पीडा हुई । उसने कहा, ” ऐसे कठोर वचन मत बोलिए । आत्मा सबकी एक है । मेरी आत्मा को चोट पहुँचाकर
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