बेजोड़👌👌👌👌👌 इस साहित्य को पढ़कर ऐसा एहसास होता है मानों कथानक स्वयं पाठक को आपने साथ-साथ गाँव में ले जाता है। जहाँ की चाय की दुकान एक अदृश्य सूत्र की भाँति लोगों के रिश्तों को जोड़े रहती है, जो गाँव की जाति मजहब की समरस्ता का गजब का उदारहण प्रस्तुत करती है। दशको बाद एक ऐसे लेखक ने साहित्य जगत में प्रवेश किया है जो बेहिचक और दृढ़ता से अपनी बातों को, समाज के खोखलेपन को, ऊँच-नीच को, या ये कहा जाए कि समाजिक कुरीती के हर पहलू को पाठकों के सामने बहुत हीं सहजता है लाने में कामयाब रहा है। बिरंची,पबीत्तर दास या कोई भी पात्र हो इनको पढ़ कर इनके वास्तविक होने का एहसास होता है मानो अभी-अभी इन्हीं पात्रों के साथ हमने कुछ समय बिताया हो और हर पात्र, पाठक के मन-मस्तिष्क में एक यादगार छाप छोड़ जाता है।इस किताब को एक बार पढ़ लेने वाला इसे बार-बार पढ़ना चाहेगा। जय हो........