Top positive review
5.0 out of 5 starsखरीदकर और पढ़कर अच्छा लगा...
Reviewed in India on 7 November 2019
उपन्यास 112 पेज का है...22 छोटे-छोटे अध्यायों में विभक्त...इतना छोटा और रोचक उपन्यास है कि केवल 24 घंटों के अन्दर ही समाप्त हो गया...भाषा आसानी से समझ आने वाली...कम समय के लिये अद्भुत उपन्यास...
यह एक प्रेम कहानी है ललिता और शेखर की...
ललिता एक 13 वर्ष की लड़की और 26 वर्षीय शेखर का स्नेह संबंध कब पवित्र प्रेम मेंं परिणत हो गया किसी को पता न चला...
एक छोटा-सा अंश-
स्निग्ध, उज्जवल चाँदनी में दोनों छत पर चुपचाप खड़े रहे। नीचे अन्नाकाली की गुड़िया-लड़की के ब्याह की शंखध्वनि सुनाई दे रही थी। कुछ देर उसी तरह मंत्रमुग्ध खड़े रहने के बाद शेखर ने स्वर में अपार स्नेह भरकर कहा- "अब ओस में मत खड़ी रहो, जाओ, नीचे जाओ।"
"जाती हूँ" कहती हुई ललिता नीचे झुकी और उसके पैरों को छूती हुई उठकर खड़ी हो गई, फिर धीमे से बोली- "मुझे क्या करना होगा, यह बता जाओ।"
शेखर को हंसी आ गई। कुछ सोचने के बाद उसने अपना हाथ बढ़ाया और ललिता को अपने से सटाकर उसके अधरों से अपने अधर छुआकर बोला- "मुझे कुछ भी नहीं बताना होगा ललिता ! आज से तुम अपने आप ही सब कुछ समझने लगोगी।"
ललिता के सारे शरीर में रोमांच हो आया।